इस बार राखी सात समंदर पार मनानी पड़ीं। लेकिन उतनी खराब नहीं मनी। सुबह सुबह उठते ही रक्षा - बन्धन के गाने लगाए जिससे मेरा मूड थोडा सेंटी हो गया; तनु तो पहले ही दिन से बहुत सेंटी थी। उसके बाद तनु ने खीर बनायी और भगवान् को भोग लगाया और फिर गणेश जी को राखी बाँधी।
मुझे तो नेहा कि बहुत याद आ रही थी, लेकिन इस बार शायद उसने राखी नहीं भेजी, इतनी दूर कैसे भेजती? लेकिन भगवान् ने शायद इसका इंतज़ाम कर रखा था। यहाँ भी नेहा भेज दी।
नेहा का यहाँ राखी वाले दिन होंना, उसका मुझे राखी बांधना और उसका भी नाम नेहा होना, क्या सब सिर्फ इत्तेफाक है? मेरे ख़्याल से तो इससे कुछ ज्यादा।
खैर, बहुत अच्छा लगा, मानो मन की मुराद पूरी हो गई हो। नेहा भी सुबह सुबह उठ कर मेरे लिए हलवा बनाया, और फिर फ़टाफ़ट यहाँ आ गई।
फिर नेहा ने मेरे माथे पर तिलक लगाकर
राखी बाँधी
और हलवा खिलाया ।
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