भारतीय रेल
भारतीय रेल की बोगी,
आपने भी होगी भोगी!
एक बार हम भी कर रहे थे यात्रा,
पर देख कर सवारियों की मात्रा;
छूट गया हमारा तो पसीना,
पर फिर भी, तान कर सीना
घुसने का करने लगे प्रयास,
पर औरों को यह बात न आई रास।
पहले दरवाज़े से घुसे, तो दूसरे से निकाल दिया,
साथ ही चटका हमारा कंकाल दिया।
ख़ुद को घुसाने के लिए भी,
कुली का लेना पड़ा सहारा;
हम तो अन्दर घुस गए,
पर सामान; बाहर ही रहा हमारा।
अन्दर का दृश्य तो, बड़ा ही घमासान था,
वह तो अपने आप में, कुरुक्षेत्र का मैदान था।
खैर, बर्थ न मिली, तो रेल के earth पर ही लेट लिए,
श्वान की भाँती, ख़ुद के शरीर को समेट लिए।
इधर हमारी आँखें झपकीं,
उधर हमारे चेहरे पर, दो बूँद जल सी टपकीं
.......टप टप ....
ऊपर देखा, तो एक शिशु लीक कर रहा था,
और वह भी, काफ़ी quick कर रहा था
फिर उसकी मातेश्वरी की जो देखी काया,
याद टुनटुन का शरीर हो आया,
प्रथम स्मरण हमने सारे देवन को किया,
फिर हाथ जोड़ कर, उनसे, विनम्र निवेदन किया,
"बच्चे को रोक लीजिये प्लीज ! "
इसपर वह बोलीं खीज,
"बच्चा क्या मेरे कहने से रुक जायेगा?
विधाता का बनाया विधान, यूँ ही झुक जाएगा?"
मैंने कहा कि, "कहीं मुसीबत न हो जाए,
नींद में सुसु भी, शरबत न हो जाए।"
उन्होंने कहा, "ठीक ही है, इसने कृत किया,
एक कवि को, उसकी योग्यता के अनुसार ही पुरुस्कृत किया।"
मैंने पुछा, "कवि हूँ मैं;
ये आपने कैसे जान लिया?"
जवाब मिला, "बेहाल हाल,
से पहचान लिया।"
मैंने कहा, "मैडम! मैं कवि हास्य व्यंग का हूँ।
नवरंग था कभी, अब बदरंग हूँ।
फिलहाल तो गुस्से से लाल पीला हूँ,
रंगीला था पहले, अब सिर्फ़ गीला हूँ। "
mad मैडम ने नेहले पे देहला दिया,
उत्तर क्या दिया, मेरा दिल दहला दिया,
बोलीं, "बच्चे का क्या भरोसा........
अगली बार कुछ और ही परोसा?"
दूसरों को हंसाते हो,
कहीं ख़ुद मखौल न हो जाओ;
चले जाओ दूर कहीं,
dettol से burnol न हो जाओ।"
आपने भी होगी भोगी!
एक बार हम भी कर रहे थे यात्रा,
पर देख कर सवारियों की मात्रा;
छूट गया हमारा तो पसीना,
पर फिर भी, तान कर सीना
घुसने का करने लगे प्रयास,
पर औरों को यह बात न आई रास।
पहले दरवाज़े से घुसे, तो दूसरे से निकाल दिया,
साथ ही चटका हमारा कंकाल दिया।
ख़ुद को घुसाने के लिए भी,
कुली का लेना पड़ा सहारा;
हम तो अन्दर घुस गए,
पर सामान; बाहर ही रहा हमारा।
अन्दर का दृश्य तो, बड़ा ही घमासान था,
वह तो अपने आप में, कुरुक्षेत्र का मैदान था।
खैर, बर्थ न मिली, तो रेल के earth पर ही लेट लिए,
श्वान की भाँती, ख़ुद के शरीर को समेट लिए।
इधर हमारी आँखें झपकीं,
उधर हमारे चेहरे पर, दो बूँद जल सी टपकीं
.......टप टप ....
ऊपर देखा, तो एक शिशु लीक कर रहा था,
और वह भी, काफ़ी quick कर रहा था
फिर उसकी मातेश्वरी की जो देखी काया,
याद टुनटुन का शरीर हो आया,
प्रथम स्मरण हमने सारे देवन को किया,
फिर हाथ जोड़ कर, उनसे, विनम्र निवेदन किया,
"बच्चे को रोक लीजिये प्लीज ! "
इसपर वह बोलीं खीज,
"बच्चा क्या मेरे कहने से रुक जायेगा?
विधाता का बनाया विधान, यूँ ही झुक जाएगा?"
मैंने कहा कि, "कहीं मुसीबत न हो जाए,
नींद में सुसु भी, शरबत न हो जाए।"
उन्होंने कहा, "ठीक ही है, इसने कृत किया,
एक कवि को, उसकी योग्यता के अनुसार ही पुरुस्कृत किया।"
मैंने पुछा, "कवि हूँ मैं;
ये आपने कैसे जान लिया?"
जवाब मिला, "बेहाल हाल,
से पहचान लिया।"
मैंने कहा, "मैडम! मैं कवि हास्य व्यंग का हूँ।
नवरंग था कभी, अब बदरंग हूँ।
फिलहाल तो गुस्से से लाल पीला हूँ,
रंगीला था पहले, अब सिर्फ़ गीला हूँ। "
mad मैडम ने नेहले पे देहला दिया,
उत्तर क्या दिया, मेरा दिल दहला दिया,
बोलीं, "बच्चे का क्या भरोसा........
अगली बार कुछ और ही परोसा?"
दूसरों को हंसाते हो,
कहीं ख़ुद मखौल न हो जाओ;
चले जाओ दूर कहीं,
dettol से burnol न हो जाओ।"
सूझा न हमको कोई जवाब,
इसलिए निकल लिए, वहां से जनाब ।
तब से कर ली, हमने है तौबा,
पैदल सफर कर लेंगे,
पर भारतीय रेल -
न बाबा !!!
इसलिए निकल लिए, वहां से जनाब ।
तब से कर ली, हमने है तौबा,
पैदल सफर कर लेंगे,
पर भारतीय रेल -
न बाबा !!!
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